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कविता

क्रोशिया

सोनी पांडेय


क्रोशिया चलाते उसका हाथ
नाचता है एक लय में
उँगलियों में लपेटा ऊन
सरकता जाता है
सरसराते हुए
ऊन का गोला घूमता है लट्टू की तरह
बदलता जाता है
खूबसूरत मफलर में
बुनते हुए बार-बार मुस्कुराती है
ठहर-ठहर गिन लेती है फंदे
जिसे पहली बार डालते हुए
हुई थी लाल
ना जाने कितने प्रेम-पत्र सहेजे क्रोशिया
चलता जाता
जैसे बाच लेगा हर आँख की परिधि में कैद
गुलाबी प्रेम-पत्र...

अब लड़कियाँ मफलर नहीं बुनतीं
क्रोशिया बचा है कुछ प्रौढ़ हाथों में
जिससे बार-बार बुनती हैं
माँग कर सबसे ऊन
कहतीं
कुंठा कम होती है सिरजने से
दबा लेती हैं कुछ हर्फ
प्रेम की भाषा का मौन निवेदन टाँकती हैं
बार-बार क्रोशिए से।
 


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